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मुझमे.. मेरी माँ नज़र आती है...

मेरे चेहरे में छिपा है मेरी माँ का चेहरा, मेरी आँखों में मेरी माँ की झलक  नज़र  आती है.. मेरी मुस्कराहट में छिपी है मेरी माँ की हसी, मेरे संस्कारों में मेरी माँ की परवरिश नज़र आती है.. मेरी आवाज़ में छिपी है मेरी माँ की मिठास, मेरे शब्दों में मेरी माँ की सादगी नज़र आती है.. मेरे प्यार में छिपा है मेरी माँ का दुलार, मेरे कर्मो में मेरी माँ की सीरत नज़र आती है.. जब मैं देखता हूँ आईने में  खुद को , मुझको  आईने में  मेरी माँ नज़र आती है.. - ललित साहू

मुसाफिर हूं यारों....

मुसाफिर हूं यारों.... कभी.. अनजान रास्तों से, कुछ यादें चुरा लेता हूं.. कभी.. वक़्त की पूंजी से, कुछ तस्वीरे कमा लेता हूं.. कभी.. शब्दों की मिट्टी से, कुछ जज्बातों को आकार दे देता हूं.. किसी को बेकार, तो किसी को कलाकार नजर आता हूं.. - ललित साहू

बिखरा पड़ा हूं...

बिखरा पड़ा हूं, कहीं अंदर ही खुद मे । कभी वक़्त मिले, तो समेटने चले आना ।। - ललित साहू

मजदूर हमेशा है लड़ा, आज भी है अचल खड़ा...

मजदूर हमेशा है लड़ा, आज भी है अचल खड़ा । ना अगर होता लड़ा, होता ना ये देश खड़ा । इस देश के निर्माण में, मजदूरों का है हाथ बड़ा । आज उसको रह में, छोड़ दिया इस हाल पड़ा । दर-ब-दर भटका है जो, दो रोटी खोजने । क्यू लगे हो आज तुम, उसकी उम्मीदे तोड़ने । इस बार भी लड़ जाएगा, वो इस समय को मोड़ने । जिसने बनाई इस शहर में आलीशान इमारतें, उसका ही ना घर कोई उस शहर-ए-साए में । चल पड़ा वो गांव को, अपनी ख्वाहिशें छोड़कर । यूहीं नहीं जाने दो उसे, अपनी उम्मीदे तोड़कर । ले आएगी फिर भूख उसे, इस शहर के लोभ में । फिर यूहीं जुट जाएगा वो, हर दुखों को भूलकर । मजदूर हमेशा है लड़ा, आज भी है अचल खड़ा । - ललित साहू

तजुर्बे...

जितने अदद ना जुड़े थे उम्र में मेरी, कई गुना उनसे तजुर्बे होगाए... - ललित साहू

अधूरी ख्वाहिशों के सिवा कुछ नहीं...

ये सफर-ए-ज़िन्दगी चंद अधूरी ख्वाहिशों के सिवा कुछ नहीं.. कुछ किया नहीं, कुछ हुआ नहीं, कुछ मिला नहीं, कुछ रहा नहीं.. - ललित साहू

तू खुद से निकल...

तू खुद से निकल , बंदिशों को तोड़... भर एक उड़ान, तू पिंजरों को तोड़... - ललित साहू

बेफिक्र होजा फिरसे...

बेफिक्र होजा फिरसे, कुछ नहीं अब तेरे पास में.. तू जाग एक रात , एक नए सवेरे की तलाश में... - ललित साहू

मत पूछ की किस ओर को चल रहा हूँ...

मत पूछ की किस ओर को चल रहा हूँ, बस मंज़िलों की  सीढ़ी  धीरे धीरे चढ़ रहा हूँ... - ललित साहू

जब भी हूँ भटका सफर से...

जब भी हूँ भटका सफर से, मंज़िल का नया रास्ता मिल गया.. जब भी हूँ गिरा ठोकर से, संभालने का तरीका सीख गया.. जब भी हूँ हरा जीवन में, जीतने का हौसला मिल गया.. जब भी हूँ टूटा जीवन में, खुद को जोड़ना सीख गया.. - ललित साहू

जब भी पीछे मुड़कर देखता हूँ बचपन...

जब भी पीछे मुड़कर देखता हूँ बचपन, होठों पर एक मुस्कराहट सी आ जाती है.. यही तो खूबसूरती है बचपन की, जो सबके मन को लुभाती है... - ललित साहू

कई दफा तुझको बहुत याद करता हूँ...

कई दफा भीड़ में भी खुद को अकेला समझता हूँ, कई दफा तुझको बहुत याद करता हूँ.. यूँ तो सब दिया है मुझे खुदा ने, फिर भी रोज़ खुदा से तुझको माँगा करता हूँ... - ललित साहू

क्यों दूर जाता देख उसे...

क्यों दूर जाता देख उसे में बिलख बिलख कर रो दिया, जो था कभी ना मेरा फिर उसको कैसे खो दिया... - ललित साहू

तुम कहीं थोड़े से मुझमे रह गए...

यूँ तो कई जज़्बात मेरे आंसुओं में बह गए.. तुझसे दूर जाते हुए भी, तुम कहीं थोड़े से मुझमे रह गए... - ललित साहू

ढूंढ लेता हूँ ख़ुशी गमो में भी...

ढूंढ लेता हूँ ख़ुशी गमो में भी, क्योंकि मुझे रोना नहीं आता... चलता जा रहा हूँ रास्तों पर गिर के भी, क्योंकि मुझे मंज़िलों को खोना नहीं आता... - ललित साहू

सिल रहा हूँ दिल अपना...

सिल रहा हूँ धीरे धीरे दिल अपना, कहीं जज़्बात मेरे बिखर न जाए... - ललित साहू

बरगद के पेड़...

एक गांव की सड़क और सड़क किनारे लगा एक बरगद का पेड़ ! सड़क से गुजरते हुए राहगीर जो कहीं रुकना चाहते है, उतार देना चाहते है अपनी सारी थकान.. कुछ थके हुए है ज़िन्दगी क पीछे भागते भागते, तो कुछ थके है ज़िन्दगी से हारके... वो बरगद का पेड़ जो बिना कोई सवाल किये अपना लेता है उन राहगीरों को, उतार देता है उनकी सारी थकान अपनी मीठी सी छाँव में... यूँ तो उस पेड़ को कोई लालच नहीं बस उसे मलाल तो यूँ है की कोई उसके पास ज्यादा नहीं ठहरता, लोग आते है चले जाते है... मिटते ही सारी थकान भूल जाते है उसे, भूल जाते है वो प्यार जो बरगद के पेड़ ने कुछ पलो में लुटाया... भूलकर उसे, बिना अल्विदा किये निकल पड़ते है सब अपने सफर पर... बस उन्हें याद करता रह जाता है वो बरगद का पेड़.... - ललित साहू

गणेश चतुर्थी और मुहर्रम...

आज शहर की सड़कों का अज़ाब ही नज़ारा था, कहीं या हुसैन तो कहीं बाप्पा का जय कारा था... आज न कोई हिन्दू था न कोई मुसलमान था, दिख रहा शहर में सिर्फ भाईचारा था... - ललित साहू # गणेश चतुर्थी # मुहर्रम 

बंद दरवाजों का अक्सर...

बंद दरवाजों का अक्सर बंद रहना ही बेहतर होता है, भूल से भी जो खुल जाए तो यादें कब्ज़ा जमा लेती है... - ललित साहू

भूल गए हो मुझे...

भूल गए हो मुझे, या सब्र लाज़वाब रखते हो... - ललित साहू

था में भी एक भटकता सा मुसाफिर...

था में भी एक भटकता सा मुसाफिर, जो तेरे दर- ए -क़ल्ब पर आकर ठहरा है... - ललित साहू

खुद में ही सारा संसार है तू...

अपार शक्ति और विश्वास है तू, खुद में ही बहुत ख़ास है तू.. ढूंड इस जहान को अपने भीतर, खुद में ही सारा संसार है तू... - ललित साहू

सफर-ए-ज़िन्दगी में तज़ुर्बा है पाया...

सफर-ए-ज़िन्दगी में तज़ुर्बा है पाया.. जब भी हूँ भटका, नया रास्ता निकल आया... - ललित साहू

तुम पर तलाश खत्म हुई...

निकला था मैं खुद की तलाश में, तुम पर तलाश खत्म हुई... - ललित साहू

निकला था मैं खुद की तलाश में...

निकला था मैं खुद की तलाश में.. तुम मिली, और तलाश वहीं खत्म हुयी... - ललित साहू

कुछ यूँ गुजारिए सफ़र-ए-ज़िन्दगी...

कुछ यूँ गुजारिए सफ़र-ए-ज़िन्दगी, वक़्त-ए-मौत अफसोस न रहे... - ललित साहू

किताबों में तो सिर्फ सफलताएं लिखी जाती है...

किताबों में तो सिर्फ सफलताएं लिखी जाती है, ज़िक्र तो तज़ुर्बो का मेह्खानो में होता है... - ललित साहू

इश्क़ कर लिया है मैंने बेइन्तेहाँ खुद से...

इश्क़ कर लिया है मैंने बेइन्तेहाँ खुद से, अब किसी और से  दिल  लगाने का  जी  नहीं करता... - ललित साहू

किसी रोज़ सुनाऊँगा अपनी दास्तान ए ज़िन्दगी...

किसी रोज़ सुनाऊँगा अपनी दास्तान-ए-ज़िन्दगी, बस इतना ख्याल रखना कहीं तुम रो न दो... - ललित साहू

यूँ ही नहीं पड़ी मेरे माथे पर दरारें...

यूँ ही नहीं पड़ी मेरे माथे पर दरारें, जिम्मेदारियों का बोझ बचपन से साथ लेकर चला हूँ... - ललित साहू

रेत सी हो गयी है ज़िन्दगी...

रेत सी हो गयी है ज़िन्दगी.. जब भी पकड़ता हूँ, हाथ से फिसल जाती है... - ललित साहू

कभी जिनकी हम नींदें चुरा लिया करते थे...

कभी जिनकी हम नींदें चुरा लिया करते थे, अब हम उनसे नज़रें चुरा लेते है... -  ललित साहू

इश्क़ न हुआ बवाल हो गया...

इश्क़ न हुआ बवाल हो गया.. अच्छा भला जीवन था, बेहाल हो गया... - ललित साहू

तुमने एक खूबसूरत दिल खो दिया...

खूबसूरत चेहरे तलाशते तलाशते, तुमने एक खूबसूरत दिल खो दिया... - ललित साहू

इश्क़ हो गया है मुझे इस सफ़र से...

इश्क़ हो गया है मुझे इस सफ़र से.. थमता हूँ, तो सांसे भी थम जाती है... - ललित साहू

बचपन की बात...

बचपन  की  बात  ही  निराली  थी , तब  तो  हर  रोज़ ही  दिवाली  थी .. खेलता  था  घूमता  था, मस्ती  में  मैं  झूमता  था .. न  परवाह  थी  इस  ज़माने  की , न  फ़िक्र  थी  मुझे  कमाने  की .. घर   के   आँगन   की   वो   बात   अज़ब   थी , माँ   के   दामन   में   वो   नींद   गज़ब   थी .. बचपन   वाले   वो   दोस्त   अज़ब   थे , उन   दिनों   के   खेल   भी   बड़े   गज़ब   थे .. बचपन  की  बात  ही  निराली  थी , तब  तो  हर  रोज़ ही  दिवाली  थी .. वो   बचपन   कितना   नादान   था , तब   सब   कुछ   कितना   आसान   था .. देख   खिलौना   वही   मचल   जाना , फिर   पापा   का   मुझको   समझाना .. बारिश   के   पानी   में   नाव   चलाना , बारिश   में   तन   मन   दोनों   को   नहलाना .. सपनों   का   वो   महल   बनाना , नए   खिलौने   सबको दिखाना.. बचपन  की  बात  ही  निराली  थी , तब  तो  हर  रोज़ ही  दिवाली  थी .. वो   पहले   दिन   रोते   हुए   स्कूल   जाना , फिर  ढेर   सारी   वहां   यादें   बनाना .. वो   टीचर   कि   डाँट ,  वो पहला वाला प्यार, हर   रोज़   होती   थी   किसी  से   तकर

छीन ली है बॉल इस मोबाइल ने बच्चों के हाथों से...

छीन ली है बॉल इस मोबाइल ने बच्चों के हाथों से, अब वो भी समय बिता लेते है फेसबुक पर बातों से... - ललित साहू

बुन लिए है मैंने ख्वाब नए...

बुन लिए है मैंने ख्वाब नए, अब रातों को मुझे नींद नहीं आती... - ललित साहू

चुरा लिए है किसी ने ख्वाब मेरे...

चुरा लिए है किसी ने ख्वाब मेरे, अब रातों को मुझे नींद नहीं आती... - ललित साहू

एक जख्म सी है वो...

एक जख्म सी है वो.. उसका दिया दर्द मिटाने, ना जाने कितने मरहम बदल डाले... - ललित साहू

मुझसे ज्यादा चाहते है...

अभी अभी कुछ यूँ पता चला है मुझे.. कुछ लोग है इस दुनिया में ऐसे भी, जो मुझे मुझसे ज्यादा चाहते है... - ललित साहू

अब न इंसानियत रही...

न मासूमियत, न अपनापन, न सच्चाई रही.. इंसानो में, अब न इंसानियत रही... - ललित साहू

होंगे बहुत से खूबसूरत चेहरे मुझसे भी..

होंगे बहुत से खूबसूरत चेहरे मुझसे भी..  इस  जहान में, मगर कोई मुझ सा खूबसूरत दिल रख कर दिखाए... ख़ुशी के पल में तो  मुस्कुरा देता है  हर कोई, मगर कोई मुझ सा दुःख में भी मुस्कुरा कर  दिखाए... शर्तो पर तो  कर लेता है मोहब्बत  हर कोई, मगर कोई मुझ सा बिना शर्त के चाह कर  दिखाए... - ललित साहू

तुझे अपनी शायरी में अपने पास रखता हूँ...

न ही मुझे अपनी फ़िक्र है, न ही मैं अपना ख्याल रखता हूँ.. ये भी क्या कम है, जो तुझे अपनी शायरी में अपने पास रखता हूँ... - ललित साहू

न ही मुझे अपनी फ़िक्र है...

न ही मुझे अपनी फ़िक्र है, न ही मैं अपना ख्याल रखता हूँ.. ये भी क्या कम है, जो हर पल तुझे याद करता हूँ... - ललित साहू

कर लेता हूँ गुफ्तगू...

कर लेता हूँ गुफ्तगू किताबो से अक्सर, इंसानों से मुलाकात करने का अब दिल नहीं करता.. - ललित साहू

अभी थोड़ा वक्त बाकी है...

बढ़ रहे है कदम मेरे धीरे धीरे मंज़िल की  ओर , पाने में अभी थोड़ा वक्त बाकी है.. चल रहा हूँ मैं सुबह शाम और रात, रुकने में अभी थोड़ा वक्त बाकी है.. सफ़र है ये ज़िन्दगी का उतार चढ़ाव भरा, थमने मैं अभी थोडा वक़्त बाकी है.. सपने मेरे भी कुछ कम नहीं, साकार होने में अभी थोड़ा वक्त बाकी है.. बढ़ रहे है कदम मेरे धीरे धीरे मंज़िल की  ओर , पाने में अभी थोड़ा वक्त बाकी है.. - ललित साहू

आज फिर...

आज फिर वो यूँ एक हवा के झोंके सी आई, और इश्क़ का तूफ़ान उठा कर चली गयी.. - ललित साहू

ईद की तो बात ही निराली है...

ईद की तो बात ही निराली है, साथ में सेवाँइ की प्याली है.. जब यूँ चुपके से झलक दिखलाता है चाँद, यूँ दौड़े दौड़े चले आते है इमाम.. सब यूँ छज्जे से ताकते है आसमान, की कहाँ है हमारे चाँद मामू जान.. दूसरे रोज़ जब ईद मनाई जाती है, साथ में सेवाँइ भी पकाई जाती है.. बाजारों में कुछ अलग ही नज़ारे है, सारे बच्चे तो बस ईदी के दीवाने है.. ईद की तो बात ही निराली है, साथ में सेवाँइ की प्याली है.. अब बात कुछ सेवाँइ की करते है, उसमे जो ज़ाफ़रान और इलायची की खुशबू हमें बहुत लुभाती है, यूँ वो पतली पतली सेवाँइ मुँह से खिसक जाती है.. साथ में वो केसर और मेवे का मेल है, हाय अल्लाह वो मुँह में जाते ही गजब ढाह जाती है... बड़े बुजुर्गों को मेहमानों से फुर्सत कहाँ, आज तो उनके घर उतर आया है सारा जहाँ.. सब अल्लाह से माँगते है रेहमत और तरक्की की दुआएं, अल्लाह करता है दूर उनकी सारी बलाएं.. ईद की तो बात ही निराली है, साथ में सेवाँइ की प्याली है.. - ललित साहू

भुलाया ही नहीं जाता...

भुलाया ही नहीं जाता मुझसे उस एक शख्स का प्यार, और वो इतने दिल फरेब है कि रोज़ नया महबूब ढूंढ लेते है... - ललित साहू

एक दिल-ऐ-उम्मीद थी उनसे...

एक दिल-ऐ-उम्मीद थी उनसे, वो उसे भी रुसवा कर गए.. यूँ मेरे ख्वाबों में आये, और फिर मुझसे रुख्सत कर गए.. - ललित साहू